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हैरोल्ड जोसेफ लॉस्की (Laski, Harold Joseph) (30 जून 1893 – 24 मार्च 1950) ब्रिटेन के राजनीतिक सिद्धान्तकार, अर्थशास्त्री, लेखक एवं प्रवक्ता थे। वे राजनीति में सक्रिय रहे तथा 1945-1946 में ब्रिटेन के मजदूर दल (लेबर पार्टी) के अध्यक्ष रहे। वे 1926 से 1950 तक लन्दन अर्थशास्त्र स्कूल में प्राध्यापक रहे।
परिचय :
लास्की का जन्म इंग्लैंड के मैनचेस्टर नगर के एक संभ्रांत यहूदी परिवार में 30 जून 1893 ई. को हुआ था। पिता नाथन लास्की इंग्लैंड में कपास के आयात के प्रमुख व्यवसायी थे। माँ का नाम था सारा लास्की। हैरोल्ड उनकी दूसरी संतति थे। लालन पालन परंपरागत यहूदी संस्कार में हुआ। मैंचेस्टर के ग्राम स्कूल तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के न्यू कालेज में शिक्षा, 1913 में 'वेट' पुरस्कार मिला। 1914 में आधुनिक इतिहास में फर्स्ट क्लास ऑनर्स। राजनीति विज्ञान के पंडित। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् अमरीका के मैकगिल विश्वविद्यालय के अध्यापक (1914-16) नियुक्त हुए। इसके पश्चात् हारवर्ड (1916-1918), ऐमहर्स्ट (1917), येल (1919-20, 1931), विश्वविद्यालयों में उन्होंने अध्ययन किया। 1920 ई. में 'लंडन स्कूल ऑव इकोनॉमिक्स में अध्ययनार्थ लंदन आए। 1936 में वहीं राजनीति के प्रोफेसर हो गए एवं जीवन पर्यंत अध्यापन करते रहे। इसी व्यवधान में मैगडेलेन कालेज, केंब्रिज (1922-25), येल (1931-33) मास्को (1934), ट्रिनिटी कॉलेज, डवलिन (1936) में उन्होंने विशेष व्याख्यान दिए।
उनकी कृतियों में निम्नलिखित मुख्य हैं -
1. ऑथोरिटी इन मॉडर्न स्टेट (1919);
2. ए ग्रामर ऑव पॉलिटिक्स (1925);
3. लिबर्टी इन मॉडर्न स्टेट (1930);
4. दि अमेरिकन प्रेसीडेंसी (1940)।
उनकी रचना की विशेषता है धैर्य और प्रतिभा, जो समान मात्रा में उपलब्ध है। सन् 1937 ई. में एथेंस (ग्रीस) विश्वविद्यालय ने उन्हें एल.एल.डी. की उपाधि दी।
लास्की 1921 से 1930 तक ब्रिटिश इंस्टिट्यूट ऑव एडल्ट एडूकेशन के उपाध्यक्ष रहे। 1922-26 की अवधि में यह फेबियन सोसायटी के सदस्य थे। 1929 में लॉर्ड चांसलर के डेलिगेटेड लेजिस्लेशन कमेटी के सदस्य हुए। इसी तरह स्थानीय शासन की विभागीय कमेटी, लीगस एडूकेशन; इंडस्ट्रियल कोर्ट; काउंसिल ऑव दी इंस्टिट्यूट ऑव पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन; मजदूर दल (लेबर पार्टी) की एक्जिक्यूटिव कमेटी के सदस्य रहे।
लास्की सिद्धांत से समाजवादी थे तथा प्राकृतिक अधिकारों के हिमायती थे। व्यक्तिगत स्वातंत्रय में उनकी बड़ी आस्था थी। किंतु 1931 में जब ब्रिटेन में मजदूर सरकार (लेबर पार्टी की सरकार) का पतन हुआ तो वह इस विचार के हो गए कि ब्रिटेन में थोड़ी क्रांति आवश्य है। निदान 1946 में द्वितीय महायुद्ध का अवसान होने पर, जब ब्रिटेन में मजदूर सरकार अत्यधिक बहुमत से स्थापित हुई तो एक सामाजिक क्रांति अलक्षित रूप में हो गई एवं लास्की की कल्पना - 'जन-कल्याण-राज्य' सत्य हो उठी। उस समय वह ब्रिटेन के मजदूर दल के अध्यक्ष थे। राजनीति में रहने पर भी उन्हें अपने निर्वाचन में दिलचस्पी नहीं थी। मजदूर दल के टिकट पर पार्लिमेंट में अपना निश्चित निर्वाचन एवं मंत्रिमंडल में आने की संभावना रहते हुए भी उन्होंने टिकट नहीं लिया।
हैरोल्ड का विवाह फ्रीदा केरी से हुआ एवं 1915 में उनकी एकमात्र संतान कन्या डायना (डायना मेटलैंड) पैदा हुई। विवाह के समय हैरोल्ड 18 साल के थे; फ्रीदा 26 साल की! वह बहुत ही प्रगतिशील विचार की थी। संतति-सौंदर्य-वर्धन शास्त्र (Eugenics) पर भाषण देती थी। वह क्रिस्तान थी; हैरोल्ड यहूदी। धर्म की विषमता के कारण लास्की परिवार से उन दोनों को अलग होना पड़ा। पर 1920 में फ्रीदा यहूदी धर्म में दीक्षित हो गई। अत: परिवार से लास्की का संबंध पुन: स्थापित हो गया।
लास्की की शिक्षा पूर्णत: बौद्धिक थी। कला या संगीत का कोई प्रभाव उनके जीवन में परिलक्षित नहीं होता। संतति-सौंदर्य-वर्धन में उनकी विशेष रुचि थी। उन्होंने गॉल्टन क्लब की स्थापना की, जहाँ इस विषय पर विचार वार्ता होती रहती थी। पुस्तकों का संकलन उनकी हॉबी थी। टेनिस के वह अच्छे खिलाड़ी थे। पत्रकारिता से उनका घनिष्ठ संबंध था। किसी समय वह दैनिक डेली हेरल्ड के सह संपादक रह चुके थे। उन्होंने एडमंड बर्क तथा जॉन स्टुअर्ट मिल की कृतियों का संपादन किया। इंग्लैंड एवं अमरीका के पत्रों में वह बहुधा अपना निबंध प्रकाशित करते रहते थे। लार्ड ब्राइस के पश्चात् अमरीका की राजनीति, इतिहास तथा विधान से लास्की के समान अन्य कोई व्यक्ति परिचित नहीं रहा है। वाग्मिता में उनका स्थान इस शताब्दी के उच्चतम वक्ताओं में है।
मार्च 24, सन् 1950 ई. को इनका देहांत हुआ। बहुत से लोगों का अनुमान है कि अत्यत कार्यसंकुल जीवन रहने के कारण उनकी असामयिक मृत्यु हुई।
लास्की का प्रभाव विश्वव्यापी रहा है। लंडन स्कूल ऑव इकॉनॉमिक्स में अध्यापन करते समय संसार के भिन्न भिन्न देशों से छात्र-छात्राएँ अध्ययन के निमित्त उनके पास आते रहे और उनकी प्रगतिशील समाजवादी भावनाओं से प्रभावित हो अपने अपने देश में जनकल्याण की योजनाओं में उन सबों ने किसी न किसी रूप में अवश्य योग दिया। उनके कितने ही छात्र आज एशिया एवं अफ्रीका के विभिन्न देशों में राजनीति में एव उच्च सरकारी पदों पर विराजमान हैं। विद्यार्थियों से उन्हें अत्यधिक प्रेम था। उन्हें हर तरह सहायता पहुँचाने के लिए वह सर्वदा इच्छुक रहते थे। उनके लिए लास्की के घर का दरबाजा सदा खुला रहता था। एक विशिष्ट विद्वान् ने कहा - लास्की वर्तमान युग के सबसे प्रगतिशील एवं निर्भीक विचारकों में थे। राजनीति विज्ञान का एक स्कूल ही उन्हें केंद्र बनाकर विकसित हुआ है।